नई रिसर्च चौंकाने वाली है – भारत में 62% मीटिंग्स में लोग सुनते तो हैं, बोलते नहीं। कारण? माइक्रोमैनेजमेंट का डर, “गलत बोल दूंगा” का डर, और “बॉस क्या सोचेगा” का डर।
नतीजा:
- अच्छे आइडियाज़ दबकर मर जाते हैं
- इनोवेशन रुक जाता है
- कर्मचारी साइलेंटली बर्नआउट हो जाते हैं
स्वस्थ कल्चर में हर आवाज़ को स्पेस मिलना चाहिए। साइलेंट मीटिंग्स स्मार्ट मीटिंग्स नहीं होतीं।
आपके ऑफिस में भी साइलेंट मीटिंग्स चलती हैं? या आप खुलकर बोल पाते हैं? नीचे बताएं।

